गणेश चतुर्थी अपने साथ लाता है मंगल और कलंक
डॉ रमेश कुमार सोनसायटी
नवापारा राजिम यूं तो भगवान श्री गणेश जी को विघ्नहर्ता मंगल करता के नाम से जाना जाता है चतुर्थी के दिन स्थापित किया जाता है इस दिन उपवास पूजन , अर्चन दान पुण्य करना बहुत ही शुभ फलदाई माना जाता है लेकिन दूसरा पक्ष है यह भी है कि इस दिन का चांद को जाने अनजाने में देख लेना चंद्र दर्शन हो जाना कलंक माना गया है उदाहरण स्वरूप गोस्वामी तुलसीदास जी कृत रामचरितमानस में सुंदरकांड के अंतर्गत विभीषण रावण संवाद में विभीषण जी ने रावण को कहा है कि चौथ की चांद, पर नार लिलार गोसाईं, ठीक इसी तरह से द्वापर युग में भगवान श्री कृष्ण जी ने भी चंद्र दर्शन कर लिया था जिसके कारण समयंतक मणी, ले लेने का मिथ्या कलंक लगा था इसके पीछे का रहस्य यह है कि एक बार गणेश जी अपने सवारी मूषक जी के साथ भ्रमण पर निकले थे जहां राह में अचानक से गिर गए थे जिसको देखकर चंद्रमा ने गणेश जी का उपवास किया था तद उपरांत गणेश जी ने श्राप दिया कि जो भी प्राणी चतुर्थी के दिन चंद्रमा का दर्शन करेगा उसे मिथ्या कलंक लगेगा तब से भाद्रपद शुक्ल चतुर्थी के दिन का चांद को देखना निषेध माना गया है लेकिन जाने अनजाने में देख लेने पर उसके निवारण स्वरूप विष्णु पुराण के अनुसार समयंतक मनी कथा का श्रवण पठन पाठन, करने से दो षा रोपण मिथ्या कलंक नहीं लगता है, कथा इस प्रकार से है
कि द्वापर युग में द्वारकापुरी में सत्राजीत नामक एक यदुवंशी रहता था वह भगवान सूर्य का परम भक्त था उसकी भक्ति से प्रसन्न होकर भगवान सूर्य देव ने समयंतक नामक मणी जो सूर्य के समान ही कांतिमान थी, प्रदान किया वह प्रतिदिन आठ भार सोना देती थी जिसके प्रभाव से वहां किसी भी प्रकार की कमी नहीं थी सभी लोग संपन्न थे भय मुक्त जीवन निर्वाह करते थे रोग दोष अनावृष्टि सर्प चोर डाकू आदि का भय नहीं रहता था एक दिन यह यदुवंशी उग्रसेन की सभा में इस मणि को धारण कर उपस्थित हुआ जो कि दूसरा सूर्य के समान कांतिमान लग रहा था जिसे देखकर भगवान श्री कृष्ण की इच्छा हुई की यह मनी उग्रसेन के पास होता, तो राष्ट्र कल्याण होता यह बात यदुवंशी को पता लगा तो इस मणि को अपने भाई प्रसेन् को दे दिया, यह एक दिन इस मणि को धारण कर जंगल में आखेट के लिए निकला रास्ते में सिंह ने उनके घोड़ा सहित मार डाला सिंह को रिक्ष राज जामवंत, ने मार कर अपने साथ ले गया और बच्चों को खेलने के लिए दे दिया जिससे वह खेला करती थी, इधर द्वारिका में लोक अपवाद के स्वर उठने लगा कि भाई को मार कर, कृष्ण ने मणी ले लिया, जिसकी भनक कृष्ण को लगने पर उग्रसेन से सलाहकार अपने साथ लोगों को लेकर खोजने के लिए जंगल की ओर गया जहां घोड़ा और उसका भाई मरा हुआ मिला जहां पर सिंह के पैर का निशान था आगे चलने पर सिंह मरा हुआ मिला वहां पर रिक्षराज जामवंत के पैर के निशान मिले, वह निशान एक गुफा में जाता है जहां पर कृष्ण ने गुफा में प्रवेश किया दोनों के बीच युद्ध हुआ यह युद्ध 21 दिन तक चला लेकिन 12 में दिन में उनके साथियों ने कृष्ण को मरा समझ कर छोड़कर वापस द्वारिका आ गए युद्ध में जामवंत के शरीर शिथिल होने लग गए जिसके कारण भगवान से क्षमा प्रार्थना किया और त्रेता युग की बात को याद कर अपनी सुपुत्री जामवंतीन, को कृष्ण के साथ पाणिग्रहण शादी कर मणी के साथ, बिदा किया कृष्ण ने द्वारिका आया तो सभी लोग अचंभित रह गए और खुशी की लहर दौड़ गई कृष्णा ने इस मणि को यदुवंशी सत्राजित को वापस किया, तो उसने प्रायश्चित स्वरूप अपनी सुपुत्री सत्यभामा के साथ पाणिग्रहण विवाह किया और उस मणी, को भेंट स्वरूप कृष्ण को प्रदान किया और कृष्ण के ऊपर लगे हुए अपवाद दूर हो गए इस कथा को सुनने और पढ़ने से मिथ्या कलंक अपवाद से मुक्ति मिलती है यह प्रसंग भागवत कथा के अनुसार वर्णित है इसलिए जाने अनजाने में भाद्रपद शुक्ल पक्ष चतुर्थी के चंदा को देख लेने पर इस कथा का पठन या श्रवण किया जाना चाहिए

