*साहित्यकार न होते तो हमारी संस्कृति एवं शास्त्रों के बारे में कैसे जान पाते - विश्वानंदतीर्थ महाराज* *स्वामी सच्चिदानंद श्री चक्र महामेरू पीठम दंडी स्वामी पंडाल में साहित्यिक संगोष्ठी संपन्न* - chhattisgarhkaratan

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Tuesday, 25 February 2025

*साहित्यकार न होते तो हमारी संस्कृति एवं शास्त्रों के बारे में कैसे जान पाते - विश्वानंदतीर्थ महाराज* *स्वामी सच्चिदानंद श्री चक्र महामेरू पीठम दंडी स्वामी पंडाल में साहित्यिक संगोष्ठी संपन्न*

 *साहित्यकार न होते तो हमारी संस्कृति एवं शास्त्रों के बारे में कैसे जान पाते - विश्वानंदतीर्थ महाराज* 

*स्वामी सच्चिदानंद श्री चक्र महामेरू पीठम दंडी स्वामी पंडाल में साहित्यिक संगोष्ठी संपन्न* 





राजिम। राजिम कुंभ कल्प मेला के संत समागम परिसर में स्वामी सच्चिदानंद श्री चक्र महामेरू पीठम दंडी स्वामी के पंडाल में सोमवार को साहित्यिक संगोष्ठी का आयोजन संपन्न हुआ। जिसमें अंचल के कवि एवं साहित्यकारों के साथ ही स्वामी श्री विश्वानंद तीर्थ महाराज जी प्रमुख रूप से उपस्थित थे। उन्होंने अपने उद्बोधन में कहा कि भारत देश की संस्कृति सर्वश्रेष्ठ मानी जाती है। वेदों को श्रुति कहा जाता है। श्रुति का मतलब श्रवण करना होता है। किसी समय पर सभी शास्त्र यहां तक की वेद, पुराण, उपनिषद को श्रुति इसलिए कहते थे क्योंकि गुरु के द्वारा श्रवण किया जाता था और कंठस्थ करके उसको आगे प्रचलन में लाते थे। एक दूसरे से ऐसा क्रम चलता था परंतु अब वह समय नहीं रह गया है। पुस्तकों के माध्यम से आने वाली पीढ़ी यह जान पाती है कि ज्ञान कैसे अर्जित करना है। ज्ञान क्या है। साहित्यकार एवं विद्वतजन  कविताओं के माध्यम से रचना करके हमारे संस्कृति एवं शास्त्रों के बारे में बताते हैं। जिसके माध्यम से आने वाली पीढ़ी जान पा रही हैं। 

ब्रम्हदत्त शास्त्री ने संत कवि पवन दीवान को याद कर कविताएं पढ़ी

कार्यक्रम में उपस्थित पंडित ब्रह्मदत्त शास्त्री ने संत कवि पवन दीवान को याद करते हुए उन्हें प्रणाम किया। उन्होंने भगवान श्री राजीव लोचन तुम्हें प्रणाम, हमारे संकट मोचन तुम्हें प्रणाम की पंक्ति सुनाई। कवि डॉ. मुन्नालाल देवदास ने प्रभु राम को याद करते हुए शानदार पंक्ति पढ़ी। कहा कि राजा बनने से पहले बनवासी बन गए राम, चौदह वर्ष पैदल चलकर किए अनूठे काम, हे कौशल्या के राम, तुम्हें कोटि-कोटि प्रणाम।

मां सरस्वती का रूप लेकर नन्हीं बिटिया प्यार फैलाती हैं - संतोष सोनकर 

कवि संतोष कुमार सोनकर मंडल ने बेटियों पर शानदार रचना पढ़ी और अलग-अलग रूपों का वर्णन किया। जिसमें जन्म देती जब वह बुढ़ी माई कहलाती है, बहन बना प्रेम लुटाती, राखी बांध संतोषी हो जाती है, पत्नी के रूप में सेवा करती जब वह, देवी लक्ष्मी सा मान पाती है, मां सरस्वती का रूप लेकर नन्हीं बिटिया प्यार फैलती है। कवि मकसूदन साहू बरीवाला ने राजिम संगम की महिमा का गुणगान किया। सुश्री सरोज कंसारी ने नारी शक्ति को जागृत करते हुए कहा कि नारी तुम अदम्य शक्तिमान हो, सृष्टि की सुंदर सी रचना हो, जीवन की छंद व अलंकार हो, हे जग जननी तुम्हारी सदा विजय हो। कवि नूतन लाल साहू, डॉ रमेश सोनसायटी, जोइधाराम तारक ने शानदार रचना पर खूब तालियां बटोरी। कार्यक्रम का सुंदर काव्यात्मक संचालन करते हुए राज्यपाल पुरस्कृत शिक्षक किशोर निर्मलकर ने अपनी सुंदर गीत हरिहर लुगरा दाई पहिरी सुग्घर एकर कोरा...ऐला कही थे धान के कटोरा.. पढकर सभी का मन मोह लिया। आभार प्रकट कवयित्री डॉ. केंवरा यदु ने किया।

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