पितृ श्राद्ध तर्पण पूजन से घर में आती है सुख समृद्धि और सौभाग्य
डॉ रमेश कुमार सोनसायटी
वर्ष में एक बार पितृ पक्ष का शुभ आगमन होता है इस वर्ष 7 सितंबर 2025 दिन रविवार से प्रारंभ हो चुका है पितृपक्ष में हमारे पूर्वज लोग धरती पर आते हैं हम उन्हीं के वंशज होने के कारण पितृपक्ष में श्रद्धा भाव के साथ पितृ श्राद्ध तर्पण पूजन तिल जवां चावल, उड़द दाल सामग्री के साथ तरोई पत्ता, दुर्वा कुशा, के द्वारा नदी तालाब एवं सुविधा अनुसार घर में भी यह कार्य संपन्न करते हैं तर्पण पश्चात पूजन प्रसादी भोजन, तरोई के ही पत्ते मे, प्रदान करते हैं गुड का अग्नि में हविष्य, हूम देते हैं श्रद्धा भक्ति के साथ सामर्थ्य अनुसार, शुभचिंतकों को एवं ब्राह्मणों को भोजन कराया जाता है भोजन पश्चात प्रदक्षिणा भेंट किया जाता है अपने सामर्थ्य अनुसार वस्त्र दान भी किया जा सकता है भोजन सामग्री को घर के छत के ऊपर, डाला जाता है माना जाता है कि हमारे पूर्वज लोग काग के रूप मेंआते है, जिसे वह ग्रहण करते हैं इन सब प्रक्रिया से हमारे पूर्वज तृप्त और प्रसन्न होते हैं और आशीर्वाद स्वरुप सुख समृद्धि सौभाग्य प्रदान करते हैं इससे यह भी संदेश जाता है कि हमारे आने वाली पीढ़ी को अपने पूर्वजों के प्रति आदर सत्कार सद्भाव श्रद्धा भाव बनाए रखने की प्रेरणा मिलती है
पितृ मोक्ष के लिए गयासूर ने किया देहदान प्राचीन धार्मिक मान्यता है कि गयासूर नामक एक शक्तिशाली असुर, विष्णु भक्त था उनकी तपस्या से देवताओं को चिंता सताने लगी और भगवान विष्णु से प्रार्थना किया जिससे देवता सहित भगवान विष्णु ने, उनकी तपस्या भंग करने के लिए पहुंचे जहां भगवान विष्णु ने गयासुर को वरदान मांगने के लिए कहा जिससे गयासूर,ने भगवान से वरदान स्वरुप , मांगा की स्वयं को देवी देवताओं से भी अधिक पवित्र होने का वरदान मांग लिया वरदान के प्रभाव से घोर पापी भी गयासूर के स्पर्श से, मोक्ष को प्राप्त कर स्वर्ग जाने लगा जिससे धर्मराज इस समस्या से निपटने के लिए देवताओं ने यज्ञ के नाम पर उनका शरीर मांग लिया और गयासूर ने इसे स्वीकार कर लिया गयासूर, उत्तर की तरफ पांव और दक्षिण की तरफ मुख करके लेट गया इनका शरीर पांच कोस में फैला हुआ है, इसलिए इस भूखंड का नाम भी गया पड़ गया जो की बिहार में गया तीर्थ श्राद्ध तर्पण पिंडदान के लिए प्रसिद्ध हो गया गया सूर के पुण्य प्रभाव से, यहां पर पिंडदान करने से मोक्ष की प्राप्ति होती है गया में पहले विविध नामों में 360 वेदियां थी, जो कि वर्तमान में 48 बची है पिंडदान हेतु विष्णु पद मंदिर फल्गु नदी के किनारे अक्षय वट नाैकुट ब्रह्मोहिनी बैतरणी मंगला गौरी सीताकुंड रामकुंड नाग कुंड पांडू शीला रामशिला प्रेत शिला कागबली पर श्राद्ध तर्पण एवं पिंडदान किया जाता है।
पितृपक्ष और साध्य तर्पण रामायण कालीन समय त्रेता युग में भी वर्णन मिलता है एवं द्वापर युग महाभारत कालीन समय में भी वर्णन मिलता है वर्तमान में भीष्म पितामह के नाम से भी एवं सप्त ऋषियों के नाम से भी श्राद्ध तर्पण प्रथम दृष्टिया किया जाता है, तत्पश्चात पितरों को एवं काल के देवता धर्मराज यमराज, के नाम से भी श्राद्ध तर्पण किया जाता है, वर्तमान में प्रयागराज इलाहाबाद एवं छत्तीसगढ़ के प्रयाग कहे जाने वाले राजिम में भी श्राद्ध तर्पण पिंडदान किया जाता है इस प्रकार से पितृ पक्ष संपन्न होता है पीतरगण अपने लोक में वापस चले जाते हैं, जाने से पूर्व अपने वंशजों को आशीर्वाद प्रदान करते हैं जिससे घर में सुख शांति समृद्धि और सौभाग्य की प्राप्ति होती है।
पितृपक्ष पर विशेष👆🙏
